Saturday, October 2, 2010

Apni Pehchaan

कौन हूँ मैं ,
क्या शक्शियत है हमारी ,
खुद को नहीं पहचानता ,
तो कैसे जानूंगा ये दुनिया सारी.

लोगो को तो देखा बहुत ,
कभी खुद पर नजर न डाली ,
लोगो की मानी बहुत ,
कभी अपने  dil  की ना  मानी  ,
क्या हस्ती है मेरी ,
क्या हसरत है हमारी ,
खुद को नहीं पहचानता ,
तो कैसे जानूंगा ये दुनिया सारी

हाजत है क्या तेरी दीवाने ,
माल दौलत या बंगला गाड़ी ,
क्या कीमत है इन सबकी ,
सब सिफर  है , सब बाज़ारी
समय के साथ सबकुछ चले ही जाना है ,
क्या रह जाएगा हाथ में, अनाड़ी ,
खुद का पता नहीं तो  ,
कैसे जानेगा ये दुनिया सारी.

सोचो बैठो विचार करो ,
कभी दिल की भी पुकार सुनो,
कहना चाहता है बहुत कुछ ये तुझसे,
कभी इसका भी ऐतबार करो ,
क्या पता कुछ हाथ लग जाए,
जिंदगी में कुछ करने का जज्बा मिल जाए,
तभी पहचानोगे  खुद की शक्शियत ,
और तुम्हारे कदम चूमेगी ये दुनिया सारी .........